Unique: राजस्थान में बिजली कंपनियों के जिम्मेदारों ने मुफ्त में उड़ाई सब्सिडी, कर्ज के बोझ तले दबी कंपनियां

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By A2z Breaking News



कर्ज के बोझ तले दबी बिजली कंपनियां
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


राज्यपाल अभिभाषण सरकार की दशा और दिशा दोनों को बताने वाला होता है। राजस्थान की 16वीं विधानसभा के पहले सत्र में राज्यपाल कलराज मिश्र ने राज्य की जो दशा बताई, वह खराब है और दिशा यह कि आने वाले दिनों में कई अफसर नप सकते हैं।

राज्यपाल अभिभाषण में बिजली कंपनियों के घाटे पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। राज्यपाल मिश्र ने कहा कि बिजली कंपनियों में संस्थागत भ्रष्टाचार हुआ, जिससे डिस्कॉम्स का घाटा 88 हजार करोड़ के पार पहुंच गया। लेकिन इसके पीछे की असल वजह जानना भी बहुत जरूरी है, जिसका सिर्फ जिक्र भर अभिभाषण में हुआ है।

संस्थागत भ्रष्टाचार की कड़ी ऐसे जुड़ी

राज्यपाल अभिभाषण में जिस संस्थागत भ्रष्टाचार का जिक्र भर हुआ है, जानिए यह संस्थागत कैसे हुआ। संस्थागत भ्रष्टाचार के इस कारोबार में तीन महकमे सीधे तौर पर जुड़े हैं। पहला बिजली कंपनी (जो बिजली, कोयले की खरीद करती है), दूसरा वित्त मार्गोपाय विभाग (जो बजट आवंटित करता है और बिजली कंपनियों की सब्सिडी पास करता है) तीसरा स्टेट पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन जहां से सरकार अपनी संस्थाओं को लोन दिलाती है। पिछली सरकार में वित्त विभाग ने अपनी कई पीएसयूज के फिक्स्ड डिपॉजिट तुड़वाकर पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन को लोन के रूप में दिलावा दिए। पॉवर फाइनेंस कॉरपोरशन से बिजली कंपनियों को लोन दिलावा दिया। अब बिजली कंपनियां पैसा चुकाने की स्थिति में नहीं हैं तो इन सरकारी कंपनियों का पैसा कैसे वापस होगा, यह बड़ा सवाल है?

उदाहरण से समझिए-एक अफसर तीन चार्ज

एक ही अफसर इन तीनों संस्थओं से जुड़ा हुआ है। वित्त मार्गोपाय में बिजली कंपनियों की सब्सिडी का काम देखने के लिए अजमेर डिस्कॉम के AO को रिवर्स डेप्यूटेशन पर सरकार में तैनाती दे दी गई। बिजली कंपनियों को लोन देने के प्रस्ताव जिस पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन से तैयार होते हैं, वहां भी इसे चार्ज दे दिया गया। इसके लिए सरकार के तमाम नियम कायदे खूंटे पर टांग दिए गए। सरकार के अफसरों पर कॉरपोरेशन की निगरानी का जिम्मा होता है। लेकिन यहां कॉरपोरेशन के अफसर को सरकार में उन्हीं की कंपनियों की निगरानी का काम दे दिया गया।

जिन बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने उदय योजना में इनका 62 हजार करोड़ का घाटा टेकओवर किया लिया था। वहीं, बिजली कंपनियां एक बार फिर घाटे के पहाड़ पर बैठ गई हैं। मौजूदा समय में बिजली कंपनियों का घाटा करीब 88 हजार करोड़ रुपये पार हो चुका है। यह आंकड़ा राज्य सरकार की ओर से राज्यपाल अभिभाषण में दिया गया है। अकेले राज्य सरकार की गारंटी पर ही बिजली कंपनियों ने बाजार से करीब 85 हजार करोड़ रुपये का लोन उठा लिया है। यह आंकड़ा सीएजी की रिपोर्ट में मौजूद है।

क्यूं पहुंचे इस स्थिति में

उदय योजना के बाद बिजली कंपनियों को घाटे से बचाने के लिए बजट में अतिरिक्त सब्सिडी का प्रावधान किया गया। लेकिन इसके बाद भी बिजली कंपनियों ने बाजार से जमकर कर्ज लिया और उसकी गारंटर बनी सरकार। इसके पीछे की वजह यह है कि जो सब्सिडी राज्य सरकार की ओर से बिजली कंपनियों को दी जानी थी, वह मुफ्त की योजनाओं में उड़ा दी गई और बिजली कंपनियों को बाजार से इसके एवज में और कर्ज दिलवा दिया गया। मौजूदा वित्त वर्ष में बिजली कंपनियों को जो सब्सिडी अलॉट की गई, उसकी आधी भी नहीं मिल पाई। इसके एवज में उन्हें बाजार से कर्ज दिला दिया गया।

घाटे से बचाने के लिए बजट में 25 हजार करोड़ का प्रावधान

  • यह हालत तब हैं, जब बजट में बिजली कंपनियों के लिए सालाना 25 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।

  • इसमें से बिजली की दरें नहीं बढ़ाने के लिए 23 हजार करोड़ रुपये, इक्विटी अंशदान के लिए 1,460 करोड़ रुपये, उत्पादन निगम को 233 करोड़, प्रसारण निगम को 240, विद्युत वितरण निगमों के लिए 986 करोड़ रुपये व कृषि उपभोक्ताओं को राहत के लिए 109 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।

  • यही नहीं इन बिजली कंपनियों को पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन के माध्यम से आईसी, रीको, हाऊसिंग बोर्ड और बैंकों से भी सात हजार करोड़ रुपये का लोन दिलवा दिया।

  • इसके अलावा पिछली गहलोत सरकार चुनावी साल में घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों के लिए फ्री बिजली का जो एलान करके गई थी, उसकी एवज में भी बिजली कंपनियों को 10 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त देने की स्वीकृति दी गई थी।

घाटे की असली वजह- बिजली कंपनियों का बजट दूसरी जगह खर्च

मौजूदा बजट में बिजली कंपनियों के लिए 25 हजार करोड़ रुपये के अलावा 10 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त मंजूर किए गए। लेकिन यह पैसा बिजली कंपनियों के पास पहुंचा ही नहीं। वित्त वर्ष खत्म होने को है और बिजली कंपनियों को सब्सिडी के पेटे आधी राशि भी नहीं मिली। इसकी वजह यह है कि बिजली कंपनियों को जो पैसा सरकार से जाना था, वह फ्री की योजनाओं में डायवर्ट कर दिया गया और बिजली कंपनियों को पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन के जरिए और कर्ज से लाद दिया गया।

जिस अफसर ने सब्सिडी पर कैंची चलाई, उसे रवाना कर दिया

बिजली कंपनियों की सब्सिडी का काम देखने वाले पूर्व अफसर ने पांच साल में सब्सिडी के पेटे करीब 12 हजार करोड़ की कटौती की तो उन्हें विभाग से रवाना कर दिया गया। हालांकि, वह पोस्ट रिटायरमेंट काम कर रहे थे। लेकिन उन्हें रवाना करने का असली कारण यही था। उनके पास इस सीट पर बिजली कंपनियों के एओ को रिवर्स डेप्यूटेशन पर सरकार में उन्हीं की सब्सिडी के काम पर लगा दिया।

प्रस्ताव बनाने वाले और पास करने वाले अफसर एक ही

बिजली कंपनियों को मिलने वाले लोन और सब्सिडी के प्रस्ताव की जांच और उसे स्वीकृति देने का जिम्मा उन्हीं अफसरों को दिया गया, जिन्होंने पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन में बैठकर यह प्रस्ताव तैयार किए। वित्त विभाग में जिस अफसर ने सब्सिडी पर कैंची चलाई, उसे रवाना कर उसकी जगह बिजली कंपनियों से डेप्यूटेशन पर अकाउंट्स आफिसर को लगा दिया गया। सिर्फ डेप्यूटेशन पर लगाया ही नहीं, बल्कि उसे कैडर स्ट्रैंथ में भी शामिल कर लिया।

बिजली कंपनियों को लोन देने वाली पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन में वही अफसर हैं, जो वित्त विभाग में यहां से प्रस्ताव बनकर आने पर उसे स्वीकृत करते हैं। अखिल अरोड़ा एससीएस वित्त हैं, उनके पास राजस्थान पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन में एमडी का चार्ज है। इनके अलावा वित्त मार्गोपाय विभाग के ज्वाइंट सेक्रेट्री पवन जैमन व रिवर्स डेप्यूटेशन पर सरकार में बिजली कंपनियों की सब्सिडी का काम देखने वाले अकाउंट्स ऑफिसर अशीष शर्मा भी पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन में पदाधिकारी हैं।सामान्य लेखा की भाषा में यह सीधे तौर पर कान्फिक्ट ऑफ इंटरेस्ट है। जो व्यक्ति कोई प्रस्ताव बनाता है, वही उसे कैसे स्वीकृत कर सकता है।



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