QSQT Launch Day: जब 70 साल के मजरूह ने लिखा युवाओं का पसंदीदा गाना, पापा कहते हैं की मेकिंग का दिलचस्प किस्सा

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By A2z Breaking News


आमिर खान ने रविवार की रात अपने टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ का एक पुराना प्रोमो रिलीज किया तो लोगों ने उनसे उनके इस शो की वापसी की मांग शुरू कर दी। देश में चल रहे लोकसभा चुनावों को लेकर जारी किए गए इस प्रोमो में कुछ लोग रेड सिगनल जंप करते दिखते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वहां वाहनों की कतार भी लगने लगती है। इस कतार में एक ऑटो भी शामिल है और ये ऑटो रिक्शा ही जिसे आमिर खान ने अपने जीवन की पहली मार्केटिंग कैंपने का हिस्सा बनाया था। उनकी पहली बतौर रोमांटिक हीरो फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ रिलीज होने वाली थी और वह खुद ही उन दिनों ऑटो रिक्शा के पीछे पोस्टर चिपकाते दिखते, ‘हू इज आमिर खान? आस्क द गर्ल नेक्स्ट डोर…’




आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन के भाई नासिर हुसैन हिंदी सिनेमा के कामयाब फिल्म निर्माता, निर्देशक रहे हैं। फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के निर्देशक मंसूर खान इन्हीं के बेटे हैं। मंसूर खान ने पहले आईआईटी की पढ़ाई बीच में छोड़ी और फिर अमेरिका से भी बीच सत्र ही पढ़ाई अधूरी छोड़ बंबई लौट आए। नासिर हुसैन के पास तब एक कहानी थी, जिसे उन्होंने एक दिन मंसूर खान को बुलाकर इस पर फिल्म बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। मंसूर खान ने अपने चचेरे भाई आमिर खान को फिल्म के हीरो के तौर पर लिया और फिल्म शुरू कर दी।


आमिर खान की पहली पत्नी रीना दत्ता ने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत मेहनत की। फिल्म के सुपरहिट गाने ‘पापा कहते हैं’ में वह जरा देर के लिए दिखती भी हैं। पर तब आमिर खान को इस बात की सख्त मनाही थी कि वह रिलीज से पहले किसी को अपनी शादी के बारे में कतई नहीं बताएंगे। मंसूर खान को फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के लिए उनके पिता ने अपनी टीम के संगीतकार आर डी बर्मन और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी की जोड़ी दी। लेकिन मंसूर खान की आर डी बर्मन से जमी नहीं। मशहूर संगीतकार चित्रगुप्त के बेटे उन दिनों आनंद-मिलिंद कुछ फिल्मों में संगीत दे चुके थे।

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70 साल के हो रहे थे मजरूह सुल्तानपुरी उन दिनों जब उन्होंने ये गाना लिखा। उन्होंने मंसूर के मंसूबे भांप लिए थे और मजरूर सुल्तानपुरी की तमाम खासियतों में ये बात खासतौर से शामिल रही है कि उनके गाने हमेशा वक्त के साथ कदमताल करते रहे। देव आनंद की फिल्म ‘तीन देवियां’ के लिए साल 1965 में ‘ऐसे तो ना देखो..’ लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी ने 29 अप्रैल 1988 को रिलीज हुई फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के लिए लिखा ‘गजब का है दिन देखो जरा..!’

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