रतन टाटा की कार कंपनी बनी बाजार की ‘महारानी’, 3.14 लाख करोड़ रुपये से अधिक संपत्ति

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By A2z Breaking News


नई दिल्ली: भारत के दिग्गज और परोपकारी उद्योगपति और टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा की वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी मारुति सुजुकी को पछाड़कर बाजार पूंजीकरण के मामले में भी महारानी बन गई है. इसी के साथ, देश के आम नागरिक को किफायती और टिकाऊ कार बनाकर बेचने वाली यह कंपनी भारत की सबसे मूल्यवान वाहन निर्माता कंपनी बन गई है. इसके बाजार पूंजीकरण की बात की जाए, तो मंगलवार तक इस कंपनी का बाजार पूंजीकरण 3,14,635.06 करोड़ रुपये रहा, जबकि इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया के पास 3,13,058.50 करोड़ रुपये तक बाजार पूंजीकरण है. इस लिहाज से मारुति सुजुकी दूसरे नंबर की सबसे मूल्यवान वाहन निर्माता कंपनी बन गई.

टाटा मोटर्स ने मारुति सुजुकी को पछाड़ा

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, टाटा मोटर्स मंगलवार को बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) के लिहाज से देश की सबसे मूल्यवान वाहन कंपनी बन गई. उसने इस मामले में मारुति सुजुकी इंडिया (एमएसआई) को पीछे छोड़ दिया है. कंपनी के बाजार पूंजीकरण में उसके मूल्यांकन के अलावा डीवीआर (डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स) शेयर शामिल हैं.

बीएसई में टाटा मोटर्स के शेयरों में उछाल

रिपोर्ट में कहा गया है कि टाटा मोटर्स का शेयर मंगलवार को बीएसई में 2.19 प्रतिशत चढ़कर 859.25 रुपये पर पहुंच गया. कारोबार के दौरान यह 5.40 फीसदी उछलकर 886.30 रुपये प्रति शेयर पर पहुंच गया था. टाटा मोटर्स लिमिटेड का डीवीआर शेयर 1.63 फीसदी की बढ़त के साथ 572.65 रुपये पर पहुंच गया. वहीं, मारुति का शेयर 0.36 फीसदी की गिरावट के साथ 9,957.25 रुपये पर बंद हुआ.

किसके पास कितनी संपत्ति

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि टाटा मोटर्स का एमकैप 2,85,515.64 करोड़ रुपये जबकि टाटा मोटर्स लिमिटेड डीवीआर का बाजार पूंजीकरण 29,119.42 करोड़ रुपये रहा. कुल मिलाकर यह 3,14,635.06 करोड़ रुपये रहा. यह मारुति के 3,13,058.50 करोड़ रुपये के मूल्यांकन से 1,576.56 करोड़ रुपये अधिक है. सेंसेक्स और निफ्टी कंपनियों में टाटा मोटर्स सर्वाधिक लाभ में रहने वाली कंपनियों में शामिल रही.

क्या होता है डीवीआर

डीवीआर (डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स) शेयर सामान्य इक्विटी शेयरों की तरह होते हैं, लेकिन इसमें मतदान अधिकार और लाभांश अधिकार अलग होता है. कंपनियां जबरिया अधिग्रहण को रोकने, खुदरा निवेशकों को जोड़ने आदि कारणों से डीवीआर जारी करती हैं.



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