मतदाताओं का अंकुश दिखा इस चुनाव में

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By A2z Breaking News



नतीजे आ चुके हैं और अब सबकी निगाहें आगामी सरकार की संरचना पर टिकी हुई हैं. ये नतीजे मोदी सरकार और भाजपा के लिए एक चेतावनी हैं तथा विपक्ष के लिए यह एक अवसर है. जनता की ओर से यही संदेश आया है कि लोकतंत्र में निरंकुश सत्ता नहीं चल सकती है.

यह वोट केवल सरकार के लिए नहीं है, विपक्ष के लिए भी है. लोग चाहते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत विपक्ष की मौजूदगी हो और सरकार ठीक तरह से चले. अगर एक शब्द में निष्कर्ष कहा जाए, तो मतदाताओं ने अंकुश लगाया है. उन्होंने भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने का जनादेश दिया है, पर उसे नियंत्रित भी किया है.

भाजपा नेतृत्व को अब एक गठबंधन सरकार चलाना होगा, सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना होगा तथा अपनी पार्टी के उन नेताओं को लेकर भी सजग रहना होगा, जिन्हें किनारे किया गया है. भाजपा अभी भी विपक्ष की चिंताओं को अनसुना कर सकती है, लेकिन उसे यह अहसास भी रखना होगा कि उसके खाते में साठ से अधिक सीटों की कमी आयी है. लोकतांत्रिक राजनीति में अंकगणित के बदलने के साथ केमिस्ट्री भी बदल जाती है. इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छी तरह से जानते हैं.

लोकसभा के परिणामों के साथ-साथ हमें आंध्र प्रदेश और ओडिशा में हुए विधानसभा चुनाव को भी देखना चाहिए. ओडिशा में नवीन पटनायक और उनकी पार्टी बीजू जनता दल 24 साल से सत्ता में थे. ऐसे में एक थकान थी और पटनायक का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था.

उन्होंने एक-दो जगह ही सभाएं कीं और प्रचार अभियान से अलग रहे. लोगों को इसका आभास हो गया था और वे चाहते भी नहीं थे कि मुख्यमंत्री प्रचार के लिए निकलें. यह बात भी सामने आयी कि पार्टी और सरकार को पूर्व नौकरशाह वीके पांडियन और कुछ अन्य नौकरशाह चला रहे थे. पांडियन के बारे में यह भी कहा जाने लगा था कि वे आगे चलकर नवीन बाबू के राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बन सकते थे. इन कारकों का मिला-जुला असर हमें नतीजों में दिख रहा है. यह भी उल्लेखनीय है कि दूसरी ओर भाजपा के रूप में एक विकल्प तैयार था. भाजपा ने राज्य में बीते पांच वर्षों में बड़ी मेहनत की है, जिसका फायदा उसे मिला है.

इसी प्रकार आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी सरकार के विरुद्ध एंटी-इनकम्बेंसी थी, जिसके चलते चंद्रबाबू नायडू की वापसी हुई है. नायडू ने खुद भी कहा है कि लोगों ने सत्ता के अहंकार के खिलाफ वोट दिया है. जगन रेड्डी ने नायडू को जेल तक भेज दिया था. चूंकि जगन रेड्डी ने 38 कल्याणकारी योजनाएं चलायी हुई हैं, जिनका व्यापक लाभ लोगों को मिला है, तो माना जा रहा था कि इसके चलते उनकी सरकार बच जायेगी, पर ऐसा नहीं हुआ.

लोकसभा की तरह ओडिशा और आंध्र प्रदेश के परिणाम भी सत्ता के अहंकार के विरुद्ध आये हैं. भारत का मतदाता आम तौर पर बहुत सहिष्णु होता है और वह अक्सर सरकारों एवं राजनीतिक दलों की गलतियों को अनदेखा कर देता है, लेकिन सत्ता के अहंकार के विरुद्ध प्रतिक्रिया देता है. महाराष्ट्र के नतीजे भी ऐसे ही हैं. वहां पार्टियों में तोड़-फोड़ कर सरकार बनायी गयी. यह रवैया न तो शिव सेना के समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं को पसंद आया, न ही एनसीपी के लोगों व मतदाताओं को.

राज्य की राजनीति में जो कुछ होता रहा, उससे उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति पैदा हुई. ये लोग, कांग्रेस भी, एकजुट रहे और अच्छी तरह से उन्होंने चुनाव भी लड़ा. यहां मैं रेखांकित करना चाहूंगी कि पूरे देश में मुस्लिम समुदाय इंडिया गठबंधन के पीछे पूरी तरह लामबंद रहा. इसका लाभ भी मिला. इस चुनाव में यह भी उल्लेखनीय बात रही कि महिलाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान किया.

आखिरी दो चरणों में मैंने खुद देखा कि उनकी भागीदारी अधिक थी. ऐसा माना जाता था कि महिलाओं में मोदी के लिए समर्थन ज्यादा है. बिहार में उन्हें नीतीश कुमार का समर्थक माना जाता है. पश्चिम बंगाल में तो वे ममता बनर्जी की राजनीति का मुख्य आधार ही हैं. महिलाओं के लिए कर्नाटक सरकार ने भी अनेक योजनाएं शुरू की हैं और राहुल गांधी एवं इंडिया गठबंधन की ओर से भी महिलाओं को भत्ता देने तथा कल्याण कार्यक्रम प्रारंभ करने के वादे किये गये. पश्चिम बंगाल में भी ऐसी योजनाएं चल रही हैं.

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मतदान में महिलाओं की भागीदारी उत्साहजनक रही, पर अलग-अलग जगहों पर उनकी पसंद भी अलग-अलग रही होगी. इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस पर अधिक अध्ययन की आवश्यकता है.

बहरहाल, विपक्ष ने एक अच्छी लड़ाई लड़ी, पर उन्हें अभी लंबा रास्ता तय करना है. भाजपा परिणामों पर अवश्य आत्ममंथन करेगी. अपनी गलतियों को रेखांकित करने और उन्हें सुधारने के बारे में पार्टी का अच्छा रिकॉर्ड रहा है. अब देखना है कि क्या मोदी और उनका तंत्र लचीलापन दिखायेगा और वे किस तरह अपने गठबंधन के सहयोगियों को साधेंगे, जो उनकी सरकार गिरा भी सकते हैं और विचारधारा के स्तर पर भी साथ नहीं खड़े हो सकते हैं. राजनीति के एक दिलचस्प दौर में हम प्रवेश कर रहे हैं.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)



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