कड़क सिंह: कहानी की ताकत और ट्रेजडी की छलांग

Photo of author

By A2z Breaking News


प्रवीण कुमार, लेखक-अध्यापक: ‘कड़क सिंह’ फिल्म न केवल पंकज त्रिपाठी के अभिनय की नयी छलांग है, बल्कि इसने कथा और कथा कहने के तरीके से भी बड़ी छलांग लगायी है. यह निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी और उनकी टीम की सफलता है. आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारी एके श्रीवास्तव (पंकज त्रिपाठी) को आत्महत्या के प्रयास के चलते निलंबित होना पड़ता है. उसकी आत्महत्या की कोशिश इसलिए असफल हो जाती है कि फांसी लगाने के लिए जिस पंखे से वह लटकता है, वह टूट जाता है. श्रीवास्तव अपनी स्मृति खो बैठता है. उसे जो भी याद है, वह इतना पुराना है कि आज के हालात से उसका कोई मेल नहीं. बड़े अधिकारी आत्महत्या के प्रयास और निलंबन की आड़ में एक चिट फंड घोटाले की उस फाइल को बंद कर देना चाहते हैं, जिसकी सघन जांच अब तक श्रीवास्तव कर रहा था. दर्शक के दिमाग का एंटिना यहीं से खड़ा होता है. आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारी इस अंदेशे से खुश हैं कि अब उसकी स्मृति वापस नहीं आयेगी. कहानी यहीं से दर्शकों को बांधना शुरू करती है. अगर दर्शक से एक छोटा दृश्य भी छूटा, तो समझिए कि कथा-युक्ति इतनी बारीक है कि फिल्म हाथ से छूट सकती है.

कड़क सिंह की क्या है कहानी

हैरानी में पड़े श्रीवास्तव को जो भी याद है, उस आधार पर वह पहले अपनी कहानी सुनाता है. फिर कड़क सिंह (श्रीवास्तव के बच्चे उसे इसी नाम से बुलाते हैं) को पांच लोग, जिनमें उसकी बेटी, उसकी प्रेमिका और एक कनिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं, अपनी-अपनी कहानी सुनाते हैं. कड़क सिंह की जिंदगी के इर्द-गिर्द की सच्ची कहानी सुनने से कड़क सिंह लगातार सही होने की ओर बढ़ता जाता है. ‘कड़क सिंह’ की ताकत उसकी कहानी के कहने के तरीके में है. बाहरी दुनिया के दृश्य कम हैं और कथा कुछ पात्रों के कंधे पर सवारी करती जाती है. किसी अच्छी जासूसी फिल्म से भी ज्यादा संदेह इसमें पसरा हुआ है. इसमें एक भी ऐसा संवाद नहीं है, जिसे आप चालू शब्दों में ‘फिल्मी’ कह सकते हैं. एक भी प्रयास, अभिनय या दृश्य ऐसा नहीं है, जिसे अतिरिक्त कहा जा सकता है.

जी5 पर देख सकते हैं कड़क सिंह

इस फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि है त्रासदी. उसे बहुत नये ढंग से साधा गया है. एक ईमानदार अधिकारी कितनी तरह के संकटों से घिरे रहने के बावजूद भी अपनी ईमानदारी की ढोल नहीं पीटता. वह न परिवार छोड़ता है और न जोखिम उठाना छोड़ता है. संघर्ष में कहीं भी विचलित नहीं होता है. पर उसकी सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि कहानी के अंत-अंत तक उसकी स्मृति सिलसिलेवार ढंग से नहीं लौटती. उसे याद नहीं कि मासूम और समझदार लड़की, जो उसे बार-बार पापा-पापा कहती रहती है, उसकी बेटी है. उसे याद नहीं कि सामने खड़ा लड़का उसका बेटा है. उसे अपनी प्रेमिका भी याद नहीं. खुद को कड़क सिंह का शागिर्द कहने वाला अधिकारी भी उसे याद नहीं. फिल्म का एक संदेश यह है कि जिंदगी अगर बची रहे, तो किसी भी त्रासदी से आगे एक सुंदर जीवन हम जी सकते हैं. जी5 पर स्ट्रीम हो रही ‘कड़क सिंह’ दिलचस्प और असरदार फिल्म है.



<

Discover more from A2zbreakingnews

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue Reading

%d